Wednesday, November 6, 2019

अक्स

कहीं जूते,
कहीं कलम
कहीं कलम के नफ़े जैसा,

किसी का ब्रेड अंडे दूध
किसी का
कुर्सी मेज पलंग जैसा,

टी वी फ्रिज मोबाइल
कहीं कपड़े लत्ते गलाबन्द जैसा
मन्यारी
कहीं पंसारी
दारोगा
कहीं भिखारी जैसा,

रिआया
उसकी हुक्मरानी,
भोगी
कहीं संसारी जैसा,

जिस जिस काम में
जो था गिरफ़्त,
मिला उसका अक्स
उसी नक्श जैसा।

Wednesday, October 16, 2019

ਮਿੱਟੀ 'ਚ ਪੈਰ

ਮਿੱਟੀ 'ਚ ਪੈਰ ਪਾ
ਖਿੜੀਏ
ਮਹਕੀਏ
ਠਹਿਰੀਏ
ਸਾਹ ਲਈਏ,

ਕਿੱਥੇ ਰੁਲਦੀ ਏਂ
ਸਾਹੋ ਸਾਹ
ਬੰਨ ਪੈਰਾਂ 'ਚ ਚੱਕਰ
ਨਸਲੇ
ਮੇਰੀ ਮਿੱਟੀ ਦਿਏ...

Sunday, September 8, 2019

धन्यवाद

एक एक
दो दो
चन्द
वार
तो कई राहगीरों नें किये थे,
अब कहाँ कहाँ जाये
ज़ख़्मी मुर्दा
क़ातिल ढूँढने!
क्यों न
ज़ख्मों के रुक्कों में
मनःस्पर्श से
बूझे उनका रूहानी पता
और
मोक्ष के लिए
धन्यवाद कहे।

Sunday, March 24, 2019

आज फिर

आज फिर
दुनिया पीछे छूट रही थी
और मैं
मन्ज़िल की ओर
रफ़्तार से
था बढ़ रहा,

आज फिर
अतीत को मायूस किये बिना
शताब्दी में
मुझे
सीट थी मिली
उल्टी दिशा की...

Thursday, January 31, 2019

दम

हमसफ़र, हमराज़, हमख़्याल थे गर हम इतने,
दम आख़िरी तन्हा मेरे हमदम क्यों पीना पड़ा।